पहला दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है माता शैलपुत्री जो पर्वतराज हिमालय की पुत्री है, इस दिन मां शैलपुत्री की विधि-विधान से पूजा करने के साथ कलश स्थापना करना शुभ माना जाता है चैत नवरात्रि जो 2 अप्रैल से शुरू हो चुका है और 11 अप्रैल को रामनवमी के साथ समाप्त होंगे. हमारे शास्त्रों के मुताबिक माता शैलपुत्री जो पर्वतराज हिमालय की पुत्री है, मां शैलपुत्री के एक हाथ में कमल का फूल और दूसरे हाथ में त्रिशूल है, वहीं मां का वाहन बैल है. मां शैलपुत्री का जन्म शैल या पत्थर से हुआ था, इस कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया है, मां के इस रूप का दर्शन से भक्तों की आत्मा तृप्त हो जाती है.
चैत्र नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणीकी पूजा की जाती है. मां ब्रह्मचारिणी की भक्ति से व्यक्ति में तप की शक्ति, त्याग, सदाचार, संयम और वैराग्य जैसे गुणों में वृद्धि होती है. मां दुर्गा का ये स्वरूप अनन्त फल देने वाला है. जैसा कि नाम से स्पष्ट है मां ब्रहृमचारिणी. यानि जो तप और आचरण की देवी हैं. मां एक हाथ में जप की माला और दूसरे में कमण्डल धारण किए हुए हैं. ऐसी मान्यता है कि मां के इस रूप की पूजा करने से व्यक्ति में संयम, त्याग और वैराग्य के साथ सदाचार के भाव भी विकसित होते हैं. मां ब्रह्मचारिणी को चीनी का भोग लगाना बहुत ही उत्तम होता है.
चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि मैं क्या अंतर है
चैत्र नवरात्रि जो चैत्र महीने में आता है और शारदीय नवरात्रि अश्विन महीने में मनाया जाता है. चैत्र नवरात्रि मैं जब धरती पर महिषासुर का आतंक बहुत बढ़ गया और देवता भी असमर्थ हो गए महिषासुर को हराने में, क्योंकि महिषासुर को वरदान प्राप्त था कि कोई भी देवता या दानव उसपर विजय प्राप्त नहीं कर सकता. सभी देवताओं ने माता पार्वती से अपनी रक्षा का अनुरोध किया तो माता पार्वती ने अपने अंश से नौ रूप प्रकट किए जिन्हें देवताओं ने अपने शस्त्र देकर शक्ति संपन्न किया. ये क्रम चैत्र के महीने में प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर 9 दिनों तक चला, तब से इन नौ दिनों को चैत्र नवरात्रि के तौर पर मनाया जाने लगा. शारदीय नवरात्रि में महिषासुर पर आक्रमण कर उससे नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया. शारदीय नवरात्रि के दसवें दिन को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता रूप में मनाया जाता है और चैत्र नवरात्रि के दौरान कठिन साधना और कठिन व्रत का महत्व है, जबकि शारदीय नवरात्रि के दौरान सात्विक साधना, नृत्य, उत्सव आदि का आयोजन किया जाता है. चैत्र नवरात्रि का महत्व महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में अधिक है, जबकि शारदीय नवरात्रि का महत्व गुजरात और पश्चिम बंगाल में ज्यादा है. शारदीय नवरात्रि के दौरान बंगाल में शक्ति की आराधना स्वरूप दुर्गा पूजा पर्व मनाया जाता है. वहीं गुजरात में गरबा आदि का आयोजन किया जाता है.