मिथिलांचल क्षेत्र का सबसे प्रमुख त्यौहार मधुश्रावणी है. मधुश्रावणी व्रत जो सुहागन महिलाएं अपने पति के लंबी उमर अथवा अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद पाने के लिए करती है. खासकर नवविवाहित के लिए यह व्रत बहुत ही खास और अनिवार्य होता है. मधुश्रावणी व्रत का आरंभ श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को होता है और इसकी समाप्ति सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को होती है. यानी इस साल 18 जुलाई 2022 को मधुश्रावणी व्रत आरंभ हो जाएगा और 31 जुलाई 2022 को इसकी समाप्ति हो जाएगी. मधुश्रावणी व्रत पूजा 14 दिन की होगी और 14वे दिन टेमी होगी, इस व्रत में नवविवाहित औरतें 14 दिन तक नमक नहीं खाती है और दिन में एक बार भी अरवा भोजन या मीठे भोजन का सेवन करती है, रात्रि के समय भोजन नहीं किया जाता है.
श्रावण महीने में मिथिला में मधुश्रावणी की गीत गूंजने लगती है. मधुश्रावणी व्रत नवविवाहित महिलाएं अपने मायके में मनाती है. मधुश्रावणी व्रत के पूजा का सामान उनके ससुराल से आता है. मधुश्रावणी व्रत की पूजा पूरे विधि विधान के साथ की जाती है. मधुश्रावणी पूजा नाग देवता (विषहर भगवान) और गौरी, शंकर और गणेश जी की जाती है. नवविवाहित महिलाएं बासी फूल से मां गौरी की पूजा करती है, वह 14 दिन तक शाम को सज धज कर सखि सहेलियों के साथ फूल के बगिया से कई तरह के फूल तोड़ती है और पारंपरिक लोकगीत गाती हुए अपनी डालिया सजाती है, और दूसरे दिन सुबह उस फूल से मां गौरी की पूजा करती है और साथ में विषहर भगवान की पूजा करती है.
नवविवाहित महिलाएं मधुश्रावणी पूजा मैं मिट्टी की मूर्तियां, विषहरा, शिव-पार्वती बनाया जाता है. इन दिनों नवविवाहिता व्रत रखकर गणेश, चनाई, मिट्टी एवं गोबर से बने विषहारा एवं गौरी-शंकर का विशेष पूजा कर महिला पुरोहिताईन से कथा सुनती है सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह व्रत सुहागन महिलाएं विवाह के पहले साल करती है, उसके बाद हर साल व्रत रखती है. पूजा स्थल पर नवविवाहिता की देख रेख में अखंड दीप प्रज्वलित रहती हैं, सुबह और शाम आस-पड़ोस की महिलाएं समूह बनाकर घंटों लोकगीत गाती है, पूजन स्थल पर मैनी (पुरइन, कमल का पत्ता) के पत्ते पर विभिन्न प्रकार की आकृतियां बनायी जाती है महादेव, गौरी, नाग-नागिन की प्रतिमा स्थापित कर व विभिन्न प्रकार के नैवेद्य चढ़ा कर पूजन प्रारंभ होती है. इस व्रत में विशेष रूप से महादेव, गौरी, विषहरी व नाग देवता की पूजा की जाती है इस व्रत में हर दिन अलग-अलग कथाएं सुनी जाती है.
टेमी
मधुश्रावणी व्रत के अंतिम दिन ससुराल पक्ष से मिठाई कपड़े गहने आते हैं और अंतिम दिन नवविवाहित महिला को टेमी से दागने की भी परंपरा है, बाती से शरीर कुछ स्थानों पर [घुटने और पैर के पंजे] दागने की परम्परा भी वर्षों से चली आ रही हैं. इसे ही टेमी दागना कहते हैं, ऐसा करना शुभ माना जाता है, यह टेमी पूजा विवाहित अपने वर के साथ करती है, या विधकरी यह रस्म अदा करती है, टेमी से दागने पर वर अपनी नवविवाहिता दुल्हन के आंखें मूंद देती है, अनेक सुहागिन महिलाओं के बीच सुहाग बांटा जाता है, तथा उनको खोईच भरा जाता है. नवविवाहित दुल्हन 14 सुहागिन महिलाओं को सुहाग बांट कर आगंतुकों को मीठा भोजन कराया जाता है, और अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हैं. मधुश्रावणी त्योहार कई जिले के देश और विदेश में मनाया जाता है जहां हमारे मिथिलांचल के लोग बसते हैं.