जन्माष्टमी- लड्डू गोपाल का श्रृंगार भोग और कथा "श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवा"

 


श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व को भारत में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी अथवा श्री कृष्ण जन्म उत्सव मनाई जाती है, और इस साल यह तिथि 19 अगस्त 2022 को हुई है, यानी इस साल कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत 18 अगस्त 2022 को रखा जाएगा, और कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव 19 अगस्त 2022 को मनाया जाएगा।



भगवान श्री कृष्ण का भोग

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा में लड्डू गोपाल के भोग का सबसे विशेष रूप है, कहा जाता है इस दिन भगवान की प्रिय प्रसाद का  भोग लगाया जाए तो,  भगवान श्री कृष्ण उस पर प्रसन्न होते हैं, तो उनकी प्रिय वस्तुओं में सबसे पहली भोग माखन है, माखन श्री कृष्ण को बहुत ही अधिक प्रिय है, माखन के साथ मिश्री भी भगवान श्री कृष्ण को अधिक प्रिय है, भगवान श्रीकृष्ण को पंचामृत जरूर अर्पित करें, धनिया की पंजीरी भगवान श्री कृष्ण को बेहद प्रिय है, इसलिए भगवान के भोग में धनिया की पंजीरी को भी शामिल किया जाता है, और सबसे विशेष वस्तु गाय के घी से बनी भोग, वह भगवान श्री कृष्ण को अधिक प्रिय है, क्योंकि भगवान श्री कृष्ण बाल अवस्था काल में गोकुल में गाय माता की अधिक सेवा की थी, अगर भक्त गाय के घी से बनी भोग भगवान को अर्पित करते हैं, तो भक्तों की पूरी मनोकामना पूर्ण होती है। भगवान को फलों का भी भोग लगाया जाता है, तो कुछ भक्त अपनी प्रथा के अनुसार 56 भोग का भोग लगाते हैं, जैसे सात्विक भोजन जिसमें हर तरह के व्यंजन होते हैं, भगवान के भोग में तुलसी विशेष रूप से प्रयोग होता है, वैसे तो भक्त अपने सक्षम अनुसार जो भोग अपनी भक्ति से चढ़ाते हैं, भगवान श्री कृष्ण उसी में खुश हो जाते हैं, कहते हैं भगवान श्रीकृष्ण सिर्फ प्रेम के भूखे हैं, तो अगर प्रेम से उनकी पूजा की जाए तो, वह अधिक प्रसन्न होते हैं, और भक्तों का उद्धार करते हैं, सुदामा जी के लिए भगवान श्री कृष्ण का प्रेम इसका प्रतीक है, भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा जी को  तीनो लोक दान में देकर कुछ नहीं लिया, सिर्फ भक्ति और प्रेम के अलावा।



भगवान श्री कृष्ण का श्रृंगार

भगवान श्री कृष्ण की पूजा में विशेष रूप श्रृंगार का होता है, अपने प्रेम के अनुसार भगवान को सजाते हैं, भक्त भगवान श्री कृष्ण लड्डू गोपाल के रूप में उनको झूले में सजाते हैं, उनका भव्य श्रृंगार करते हैं, मोर पंख का मुकुट लगाते हैं, और बांसुरी भगवान को अधिक प्रिय है, उसे भी लड्डू गोपाल के हाथों में रखकर सजाते हैं। कुछ भक्तों गोकुल का रूप देकर भगवान लड्डू गोपाल को सजाते हैं, जैसे गोकुल मैं श्री कृष्ण के दोस्त माता यशोदा नंदलाल जी उन सब की मूर्ति लगाई जाती है, भगवान श्री कृष्ण की पूजा में गौ माता की पूजा आवश्यक होती है, उन्हें भी पूजा जाता है, श्री कृष्ण जन्माष्टमी में अक्षत, चंदन, तिलक आदि से भगवान की पूजा की जाती है, श्री कृष्ण जन्माष्टमी पूरे विधि विधान से करने से लोगों के बीच सम्मान बढ़ता है, और धन का विशेष लाभ होता है।

सभी भक्तों अपनी नियम अनुसार भगवान श्री कृष्ण की पूजा करते हैं, सब के अलग-अलग नियम होते हैं, जिस नियम को वह पूरी निष्ठा के साथ निभाते हैं। भक्त भगवान कृष्ण की जन्माष्टमी के 1 दिन पहले उनकी उपासना करते हैं, और रात को 12:00 बजे भक्त व्रत पूर्ण करते हैं, भगवान श्री कृष्ण की  पूजा करते है, और दूसरे दिन जन्माष्टमी उत्सव मनाते है। भगवान श्रीकृष्ण की उपासना और अगले दिन जन्मोत्सव मनाने की कथा किसी से छुपी नहीं है, इनकी कहानी हर किसी को मालूम होगीI



कथा

 एक बार कंस अपनी बहन का विवाह वासुदेव जी से करा कर उन्हें अपने ससुराल ले जा रहे थे, रास्ते में एक आकाशवाणी हुई के, “हे मूर्ख कंस जिस देवकी और वासुदेव को तुम इतनी प्रेम से ले जा रहे वही देवकी का आठवां पुत्र तुम्हारा काल बनेगा, और तुम्हारा वध करेगा”, इस बात को सुनकर कंस ने अपनी बहन देवकी का वध करना चाहा तो कंस के बहनोई वासुदेव जी उन से विनती करने लगे की देवकी नवविवाहित और उसकी बहन है, उसका वध करना उचित नहीं है, लेकिन कंस अपने काल को देख क्रोधित था, और वासुदेव की बात नहीं मानी, तो वासुदेव जी ने कंस को वचन दिया की देवकी के प्रत्येक संतान को जन्म लेते ही वह उन्हें सौंप देंगे, कंस ने वासुदेव जी की बात मान देवकी को छोड़ दिया, मगर वह अपने मृत्यु से भयभीत होकर वासुदेव और देवकी जी को कारागार में बंदी बनाकर रखा, वासुदेव और देवकी जी की छह पुत्रों को कंस ने जन्म लेते ही उनको मार दिया, देवकी के सातवें पुत्र जिसे रोहिणी ने अपने कोख में ले लिया, और बलराम की मां बनी जब देवकी का आठवां पुत्र होने वाला था, तब कंस ने कारागार में पहरे बैठा दिए गए, कंस एक घमंडी राजा था और अत्याचारी इसलिए मथुरा के लोग कंस के अत्याचार से ग्रसित थे, मथुरा के लोग भगवान श्री कृष्ण के जन्म का इंतजार कर रहे थे, जिस दिन देवकी माता कृष्ण जी को जन्म देने वाली थी मथुरा के लोग हैं उस दिन व्रत की ओर कृष्ण की सलामती की मन्नत मांगी थी,   भगवान श्री कृष्ण का जन्म होने वाला था, कारागार के पहरे स्थिर हो गए, और सभी ताले अपने आप खुल गए, और सारे सैनिक गहरी नींद में सो गए, तभी अचानक से तेज प्रकाश आई, और भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने देवकी जी और वासुदेव जी से कहा की, वह देवकी के कोख से जन्म लेंगे, इसके बाद उन्होंने कहा कि वह उन्हें यानी उनके अवतार को गोकुल में नंदलाल के पास छोड़ आएं, और उनके घर जन्मी कन्या को मथुरा ला कर, कंस को सौंप दें। भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ तब 12:00 बजे थे, इसके बाद वासुदेव ने भगवान विष्णु जी के कहे अनुसार किया।  कारागार अपने आप खुल गए, फिर  वासुदेव जी भगवान श्री कृष्ण को तो टोकरी में बिठाकर अपने मित्र नंदलाल के घर ले गए, वहां नंद लाल की पत्नी यशोदा भी गर्भवती थी और उसने तुरंत एक कन्या को जन्म दिया था, जिसे वासुदेव जी अपने बच्चे श्री कृष्ण को देकर और नंद लाल जी से कन्या पुत्र ले लिए और वापस मथुरा चले गए, जब कंस को पता चला कि देवकी के आठवें गर्भ से एक कन्या जन्मी है, तो उससे यकीन नहीं हुआ और फिर भी कंस ने उस कन्या को भी वध करना चाहा, जैसे ही उसने उस कन्या को अपने हाथ में पकड़ा, तो वह कन्या हवा में उड़ कर एक माया देवी का रूप मैं प्रकट हो गई और कहा की, ”अरे मूर्ख मुझे मारने से क्या होगा, देवकी के आठवां   पुत्र जीवित है, जो गोकुल में नंदलाल जी के यहां पल रहा है, और वह जल्द ही तुम्हारा वध करेगा, यह सुन कंस बौखला गया और कई सारी कोशिशें की भगवान कृष्ण को मारने की, पर असफल रहा और आखिर में भगवान कृष्ण ने कंस का वध कर दिया। जन्माष्टमी का यह त्यौहार भगवान नारायण के दूसरे रूप श्री कृष्ण के रूप का जन्म उत्सव मनाया जाता है, रात को 12:00 बजे भगवान कृष्ण का जन्म उत्सव मनाया जाता है, पूजा किया जाता है, और उसके 1 दिन पहले व्रत किया जाता है।


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