जून महीना सबसे पावन मास माना गया है. कहा गया है कि इस महीने किया हुआ पूजा और व्रत 100 गुना फलकारी होता है. इस महीने की शुरुआत जेठ मास के शुक्ल पक्ष से हुई है इस पावन मास में एक पर्व गंगा दशहरा आता है. गंगा दशहरा हिंदू का सबसे खास पर्व है, इस पर्व में मां गंगा की पूजा की जाती है. इस दिन मां गंगा की विधि विधान से पूजा और आरती करने से, मां उनकी सारी मनोकामना पूर्ण करती है. गंगा दशहरा पर्व जेठ मास के शुक्ल पक्ष दशमी तिथि को मनाया जाता है. यह दिन 9 जून गुरुवार 2022 को होगा, गंगा मां की आराधना से भक्तों को मन की शांति मिलती है, पाप मुक्त होते हैं और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति मिलती है. इस दिन अगर भक्त शुद्ध मन से गंगा मै डुबकी लगाकर स्नान करते हैं और स्नान के बाद दान करते हैं, तो उन पर मां गंगा का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है, कहते हैं कि गंगा दशहरा की दिन दान करने से भक्तों को कई गुना ज्यादा फल की प्राप्ति होती है, इस दिन सभी गंगा घाट को अच्छे से सजाया जाता है, इस दिन सभी गंगा घाट में मन लुभावन नजारा रहता है, और आरती के समय जो जगमगाहट होती है, ऐसा अनुभव होता है जैसे धरती पर स्वर्ग के दर्शन हो गए हो. कहते हैं कि इस दिन भगवान की आरती करने के बाद, एक दिया जल में प्रवाह करने से भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है. उसे मन्नत का दिया भी कहा जाता है. जो भक्त सक्षम नहीं है, गंगा स्नान करने में तो वे अपने घर पर ही नहाने के पानी में गंगाजल कि कुछ बूंदे डाल दे और शुद्ध मन से स्नान कर दान.
मां गंगा जो पापों को हरने वाली है और सब के दुख दर्द खुद में समाने वाली है, वही मां गंगा, गंगा दशहरा के दिन ही धरती पर आई थी. इसलिए इस दिन को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है. भगवान शिव नारायण से प्रकट हुई विश्वरूप में, मां गंगा जो जेठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को, मां गंगा भगवान शिव की जटाओं से पृथ्वी पर प्रकट हुई थी, और इसी दिन को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है.
मां गंगा की उत्पत्ति कथा
मां गंगा के उत्पत्ति की अनेक मान्यताएं हैं, श्रीमद्भागवत के पांचवे स्कंध के अनुसार, जब राजा बली ने वामन भगवान को तीन पग धरती नापने को कहा, उस समय वामन भगवान जो भगवान विष्णु के रूप थे, उनका बाया चरण ब्रह्मांड कि और चला गया, तो ब्रह्मा जी ने जी भगवान वामन जी के चरण धोए और जो जलधारा थी उसे अपने कमंडल में भर लिया और यही जल गंगा माता के रूप में प्रकट हुआ. मां गंगा ब्रह्मा जी के कमंडल में उनके संरक्षण में स्वर्ग लोक में रहने लगी.
मां गंगा का धरती पर आगमन कथा
मां गंगा के धरती पर आगमन के कारण भगीरथ जी थे, जो बड़े ही धार्मिक राजा थे. उनके पूर्वज राजा सगर के 60 हजार पुत्र, जो महर्षि कपिल मुनि के 1000 वर्ष की समाधि टूटने का कारण बनने पर, उनके क्रोध से सब भस्म हो गए, उन्हीं के मोक्ष और उनका उद्धार के लिए, मां गंगा को धरती पर लाने के लिए, भगीरथी जी ने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की, भगीरथ की कठोर तपस्या से ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए, और उन्हें मां गंगा को धरती पर ले जाने का वरदान दे दिया, मगर इतनी ऊंचाई से मां गंगा को धरती पर ले जाने से, धरती उनका वेग सहन नहीं कर पाता, क्योंकि मां गंगा के वेग को सहन करने का सामर्थ्य भगवान शिव में था, इसलिए ब्रह्मा जी ने उन्हें भगवान शिव को तपस्या करने के लिए कहा, भगीरथ जी ब्रह्मा जी के कहे अनुसार भगवान शिव की कठोर तपस्या की, और उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अपनी जटाओं में मां गंगा को समा लिया, जिससे मां गंगा का वेग कम हो गया, जिसके कारण भगीरथ जी ने मां गंगा को धरती पर ले आए और कपिल मुनि आश्रम जहां उनके पूर्वज की अस्थियां थी, वहां गंगा मां पहुंचकर भगीरथ जी के पूर्वजों को मोक्ष और मुक्ति दे दी.