देवी कात्यायनी की पूजा-
नवरात्रि के छठे दिन मां कत्यायनी को लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित करें। कात्यायनी देवी को रोली, हल्दी और सिन्दूर लगाएं। मंत्र का जाप करते हुए इन्हें फूल अर्पित करें। माता को शहद का भोग लगाएं। घी का दीपक जलाकर आरती उतारें
ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥
मां कात्यायनी की कथा-
महार्षि कात्यायन ने देवी आदिशक्ति की घोर तपस्या कर उन्हें पुत्री के रूप में प्राप्त किया। इनकी पुत्री होने के चलते ही इन्हें कात्यायनी कहा जाता है। देवी का जन्म जब हुआ था उस समय महिषासुर नाम के राक्षस का अत्याचार बहुत ज्यादा बढ़ गया था। देवी ने ऋषि कात्यायन के घर अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन जन्म लिया था। ऋषि कात्यायन ने मां का पूजन तीन दिन तक किया। दशमी तिथि के दिन मां ने महिषासुर का अंत किया था। शुम्भ और निशुम्भ ने स्वर्गलोक पर आक्रमण कर इंद्र का सिंहासन छीन लिया था। साथ ही नवग्रहों को बंधक भी बना लिया था। असुरों ने अग्नि और वायु का बल भी अपने कब्जे में कर लिया था। स्वर्ग से अपमानित कर असुरों ने देवताओं को निकाल दिया। तब सभी देवता देवी के शरण में गए। मां ने इन असुरों का वध किया और सबको इनके आतंक से मुक्त किया।
विवाह में बाधा नहीं आती-
जिन लड़कियों के विवाह में अड़चने आती हैं वह देवी कात्यायनी की पूजा करती हैं। माना जाता है कि मां कात्यायनी न सिर्फ़ विवाह में आ रहीं उनकी अड़चनों को दूर करती हैं बल्कि उन्हें माता के आशीर्वाद से उत्तम वर प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार द्वापर युग में गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए माता कात्यायनी की पूजा की थी। कन्याओं के शीघ्र विवाह के लिए इनकी पूजा, अर्चना, आराधना और मंत्र उपासना अद्भुत मानी जाती है। अगर कुंडली में विवाह के योग क्षीण हों तो भी विवाह हो जाता है. सुंदर और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए भी इनकी पूजा फलदायी होती है।