जानिए क्यों मनाई जाती है धनतेरस इसके पीछे का रहस्य

   धनतेरस


कार्तिक के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को हम धनतेरस मनाते हैं इस दिन भगवान धनवंतरी, माता लक्ष्मी और कुबेर की पूजा होती है| इस साल धनतेरस 2 नवंबर 2021, दिन मंगलवार को पड़ रहा है। इस दिन सोना, चांदी, पीतल और बर्तन खरीदारी करना शुभ माना गया है| धनतेरस दिवाली के 2 दिन पहले मनाई जाती है हम इस दिन घर में दिए जलाते हैं और भगवान धन्वंतरी की पूजा करते हैं और माता लक्ष्मी कुबेर की भी पूजा होती है|

भगवान धनवंतरी की पूजा 

भगवान धन्वंतरी माता की पूजा धनतेरस के दिन की जाती है भगवान धन्वंतरी की पूजा अलग-अलग देशों में अलग-अलग प्रकार से की जाती है, सबकी अपनी अलग-अलग विधियां होती है पूजा करने की, कहीं भगवान धनवंतरी, देवी लक्ष्मी और कुबेर की फोटो स्थापित करके पूजा की जाती की जाती है तो कहीं चावल के आटे को पानी में डालकर पिठार बनाया जाता है और इसी पिठार से भगवान धन्वंतरी की आकृति जमीन पर बनाई जाती है और दिए जलाए जाते हैं और फिर भगवान धनवंतरी की पूजा की जाती है यह रिवाज हमारे यहां होती है धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप  जलती है इस दिन भगवान धन्वंतरि माता लक्ष्मी और कुबेर की पूजा करने से  जीवन में कभी धन की कमी नहीं रहती है| इस तिथि को धन्वंतरि जयंती या धन त्रयोदशी के नाम से भी जानते हैं। इस दिन बर्तन और गहने आदि की खरीदारी करना बेहद शुभ होता है।


 क्यों मनाई जाती है धनतेरस इसके पीछे का रहस्य

भगवान धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर लोग धनिया के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं। धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है; जिसके सम्भव न हो पाने पर लोग चांदी के बने बर्तन खरीदते हैं। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में सन्तोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है, सुखी है, और वही सबसे धनवान है।

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 धनतेरस 2021 शुभ मुहूर्त-

धन त्रयोदशी पूजा का शुभ मुहूर्त- शाम 5 बजकर 25 मिनट से शाम 6 बजे तक। प्रदोष काल- शाम 05:39 से 20:14 बजे तक।


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