चैती छठ का पर्व महत्व, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य

 


हिंदू का सबसे खास पर्व और बिहार का सबसे महत्वपूर्ण पर्व चैती छठ पूजा जो 5 अप्रैल से 8 अप्रैल तक होगा. सूर्य की उपासना का महापर्व छठ पूजा जो कि 4 दिन का दिवसीय रहेगा. पहला दिन 5 अप्रैल 2022 को नहाए खाए का दिन रहेगा दूसरा दिन खरना का दिन रहेगा जो 6 अप्रैल 2022 को है. 7 अप्रैल 2022 को भगवान डूबते हुए सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जाएगा और 8 अप्रैल 2022 को चौथे दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होता है. छठ पर्व साल में दो बार मनाया जाता है. पहला छठ चैत माह में और दूसरा कार्तिक माह में मनाया जाता है. कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाये जाने वाला छठ पर्व मुख्य माना जाता है.  यह पर्व पूरे देश में मनाया जाता है. मगर चैती छठ पूजा को बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के साथ देश के कुछ ही हिस्सों में मनाया जाता है. छठ पर्व पूरे विधि विधान से मनाया जाता है, इनके नियम बहुत कठिन है, तथा व्रती लोग सावधानी से व्रत करते हैं.

महत्त्व

धार्मिक मान्यताएं के अनुसार छठ  का व्रत करना संतान प्राप्ति के लिए उत्तम माना गया है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठी मैय्या को भगवान सूर्य की बहन कहा जाता है. मान्यता है कि, छठ महापर्व में छठी मैय्या व भगवान सूर्य की पूजा करने से छठी मैय्या प्रसन्न होती हैं इस व्रत के पुण्य  प्रभाव से घर में सुख-शांति व खुशहाली आती है. इस पूजा मै किसी पवित्र नदी या सरोवर या तालाब के तट पर सूर्य देव की अराधना की जाती है. इस दिन खासकर छठ पूजा के लिए तालाब को साफ किया जाता है और सजाया जाता है. कहते हैं छठ व्रत का अनुष्ठान कर कोई मन्नत मांगी जाए तो वह अवश्य पूर्ण होता है.

छठ व्रत नहाए खाए के दिन महिला या पुरुष सुबह उठकर स्नान करके पूजा कर फिर भोजन में, भात और कद्दू का सेवन करते हैं. यह भोजन आवश्यक होता है. व्रत किए गए लोगों के लिए फिर उसके अगले दिन खरना का व्रत करना होता है. उस दिन व्रत किए हुए लोग प्रसाद के रूप में गुड-खीर, रोटी और फल भगवान सूर्य की आराधना करके उसका  सेवन करते हैं और फिर अगले 36 घंटों तक निर्जला व्रत रखते हैं. खरना का प्रसाद खीर, रोटी नए चूल्हे मैं मिट्टी के या पीतल के बर्तन पर बनाया जाता है. इसे सिर्फ आम की लकड़ी या गाय के गोबर से बने गोइठा यानी उपले की आग पर ही बनाया जाता है. शाम को भगवान सूर्य की आराधना कर इस प्रसाद को ग्रहण किया जाता है. मगर इस प्रसाद को ग्रहण करने के कुछ नियम होते हैं. जो लोग  खरना व्रत  करते हैं, वे खरना का प्रसाद ग्रहण करते वक्त शांत होकर भोजन करते हैं, यदि किसी की आवाज उनके कानों तक चली गई तो, उसी वक्त प्रसाद ग्रहण करना बंद करना होता है. इसलिए खरना व्रत करने वाले लोग बिल्कुल शांत जगह में प्रसाद ग्रहण करते हैं. उसके बाद अगले दिन उनका 36 घंटों का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है.


संध्या अर्घ्य

खरना के बाद अगले दिन शाम को, डूबते हुए सूरज को पहला अर्घ्य  दीया जाता है, लोग उस दिन सुबह छठ पूजा का प्रसाद बनाते हैं जैसे ठेकुआ, सांच  पीरीकिया आदि और प्रसाद को डालियो एवं टोकरी में सजाया जाता है जिसमे  प्रसाद, कन्द-मूल, फलसब्जी, मसाले, गन्ना, ओल, हल्दी, नारियल, नींबू , पके केले, मिठाई होते हैं और शाम के वक्त इस सजाई हुई डालिया को नदि या सरोवर के किनारे डूबते हुए सूर्य भगवान को अर्घ्य  दीया जाता है, और छठ माता की पूजा करते हैं, फिर उस दिन वापस घर चले जाते हैं.


उषा अर्घ्य

ऊषा अर्घ्य  यानी कि उगते हुए सूरज की आराधना करना, लोग सुबह उठकर वही सजाई हुई टोकरी को फिर से नदी या सरोवर के किनारे तट पर ले जाते हैं, और सूर्य भगवान की आराधना कर मां छठ मैया की पूजा करते हैं, फिर पूजा संपन्न होने के बाद प्रसाद का वितरण करके  प्रसाद की डालिया एवं टोकरी लेकर घर वापस चले आते हैं, और घर आकर व्रत खोलते हैं. तो इस तरह चैती छठ पूजा पूरे विधि विधान से पुण्य की जाती है.

बोलिए “छठ मैया की जय”


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