चैत्र नवरात्रि का पांचवा दिन मां स्कंदमाता की पूजा

मां स्कंदमाता 


 चैत्र नवरात्रि का पांचवा दिन 6 अप्रैल बुधवार को है, इस दिन पंचमी तिथि को मां स्कंदमाता माता की पूजा होती है. स्कंदमाता की पूजा पूरे विधि विधान से करना बहुत ही उत्तम माना गया है. स्कंदमाता की आराधना करने से भक्तों की समस्त इच्छाएं पूर्ण होती है. स्कंद माता की पूजा से भक्तों के लिए मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं. इनकी आराधना से समस्त कार्य सिद्ध हो जाते हैं. स्कंदमाता पार्वती एवं उमा  का ही नाम है. स्कंदमाता की उपासना से संतान की प्राप्ति होती है. मां स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी है. इस कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है. मां स्कंदमाता को श्वेत रंग बहुत प्रिय है. स्कंदमाता देवता के सेनापति स्कंद कुमार की माता है. स्कंद कुमार कार्तिकेय जी को ही कहा जाता है.

स्कंदमाता का स्वरूप

माता का स्वरूप बहुत ही अलौकिक और मोहक है और इन्हें ममतामई के नाम से जाना जाता है, इनके चार हाथ है, जिसमें दो हाथों में कमल का फूल हैं और एक हाथ में स्कंदजी बालरूप में बैठे हैं और दूसरे से माता तीर को संभाले हैं. मां स्कंदमाता कमल के आसन पर विराजमान रहती है, इसलिए इनको पद्मासना देवी भी कहा जाता है, मां का वाहन सिंह है. शेर पर सवार होकर माता दुर्गा अपने पांचवें स्वरुप स्कन्दमाता के रुप में भक्तजनों के कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहती हैं.मां स्कंदमाता को श्वेत रंग प्रिय है पंचमी तिथि के दिन पूजा करके मां स्कंदमाता के केले का भोग लगाना चाहिए मां स्कंदमाता की आराधना करते वक्त इस मंत्र का जाप अवश्य करें.

या देवी सर्वभू‍तेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।



पौराणिक कथा

स्कंदमाता कार्तिकेय की मां है और महादेव इनके पिता, कार्तिकेय जी को स्कंद कुमार के नाम से जाना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रेता युग मैं, तारकासुर नामक एक राक्षस था. उसने भगवान ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान मांगा, मगर ब्रह्मा जी ने सृष्टि के नियम विरुद्ध वरदान नहीं दिया, ब्रह्मा जी का कहना था जिसका जन्म पृथ्वी पर हुआ है, उसका मरना निश्चित है. तब तारकासुर ने उनसे शिव पुत्र के हाथों मृत्यु मांगी तारकासुर को यह लगता था, कि माता सती की मृत्यु के बाद भगवान शिव ध्यान में चले गए, तथा वह कभी विवाह नहीं करेंगे और उनका पुत्र नहीं होगा. इसलिए वह अपने आप को अमर समझने लगा. उसके बाद तारकासुर ने देवता पर अत्याचार करने लगा, इधर माता सती ने दूसरा जन्म माता पार्वती के रूप में लिया और अपनी घोर तपस्या से महादेव को प्रसन्न कर, उनसे विवाह कर लिए और तब भगवान शिव और माता पार्वती का पुत्र, जोकि कार्तिकेय एवं स्कंद कुमार का जन्म हुआ. भगवान कार्तिकेय जी ने तारकासुर का वध कर दिया. तब से माता पार्वती जी को स्कंद की माता के नाम से भी जाना जाता है.


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