मां कालरात्रि |
चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा का विधान है. मां कालरात्रि की पूजा 8 अप्रैल 2022 शुक्रवार को सप्तमी तिथि मैं होगी. मां कालरात्रि की पूजा पूरे विधि विधान से किया जाता है. मान्यताएं हैं कि मां कालरात्रि की आराधना करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. मां कालरात्रि का यह रूप दुष्टों का संहार करने वाला है. इसलिए जो भक्त मां की आराधना करते हैं, मां उस पर की विशेष कृपा करती है, तथा उनके कष्टों को दूर कर देती है. प्राचीन मान्यताएं है, मां कालरात्रि ने मधु, कैटभ जैसे असुरों का वध किया था, मां कालरात्रि की पूजा करने वाले भक्तों को भूत, प्रेत या बुरी शक्ति का भय नहीं सताता.
मां कालरात्रि का स्वरूप-
मां कालरात्रि का हृदय बहुत ही कोमल और विशाल है, लेकिन उनका रूप बहुत ही भयंकर है. मां कालरात्रि की नाक से आग की भयंकर लपटें निकलती हैं. मां कालरात्रि के चार हाथ हैं. उनके एक हाथ में खड्ग (तलवार), दूसरे लौह शस्त्र, तीसरे हाथ में वरमुद्रा और चौथा हाथ अभय मुद्रा में हैं, मां कालरात्रि की सवारी गर्धव यानि गधा है.
मां कालरात्रि का पूजा और भोग-
मां कालरात्रि को रातरानी का फूल बेहद प्रिय है. अगर आप मां कालरात्रि को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो रातरानी का फूल उन्हें अवश्य अर्पित करे. मां कालरात्रि क को लाल रंग भी बहुत प्रिय है, इसलिए पूजा के समय लाल रंग का गुलाब या गुड़हल अर्पित करना चाहिए. मां कालरात्रि को गुड़ बेहद प्रिय हैं, इसलिए महासप्तमी पर मां कालरात्रि की पूजा करके उन्हें गुड़ या उससे बने मिठाई का भोग जरूर लगाइए भोग अर्पित करने के बाद कन्याओं, ब्राह्मणों, जरूरतमंदों को दान कर दें.
मां कालरात्रि मंत्रः
● या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
● ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:।’
मां कालरात्रि की कथा-
कथा के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था. इससे चिंतित होकर सभी देवतागण, शिव जी के पास गए, शिव जी ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा, शिव जी की बात मानकर पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया, परंतु जैसे ही दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए, इसे देख दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया इसके बाद जब दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा, तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया.