जानकी नवमी: क्यों माता सीता की पूजा से अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद मिलता है !

 


जानकी नवमी मिथिला का सर्वश्रेष्ठ त्योहार है, जो 10 मई 2022 मंगलवार को मनाया जा रहा है. यह त्यौहार हमारे भारत में और नेपाल में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. भारत में यह त्योहार बिहार के क्षेत्रों में अधिकतर मनाया जाता है. कहा जाता है, कि इसी दिन माता सीता प्रकट हुई थी, यह वही दिन था जब राजा मिथिला नरेश को, माता सीता पुत्री के स्वरूप में प्राप्त हुई थी.

जानकी नवमी के दिन वैशाख के शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को माता सीता प्रकट हुई थी. इसलिए इस दिन को जानकी जयंती के रूप में मनाया जाता है. जानकी नवमी ठीक रामनवमी के 1 महीने बाद मनाया जाता है. इस दिन माता सीता के साथ भगवान राम की भी पूजा की जाती है. सभी मंगल कार्य पूर्ण करने के लिए, यह दिन सबसे उत्तम दिन है, पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन राजा मिथिला नरेश के राज में जब भयंकर सूखा पड़ गया था, तो अपने गुरु आचार्य के कहे अनुसार, उन्होंने इस दिन खेतों की पूजा कि, और वहां हल चलाया, उसी समय मिथिला नरेश को माता सीता मिली, उसके बाद से मिथिला नरेश के राज्य में कभी भी सूखा नहीं पड़ा. माता सीता को लक्ष्मी का रूप माना जाता है, और मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को विष्णु का रूप माना जाता है. भगवान विष्णु ने असुर रावण का वध करने के लिए भगवान राम के रूप में धरती पर जन्म लिए थे, और उनके साथ में माता लक्ष्मी भी माता सीता के रूप में धरती पर जन्म ली थी, और रामायण की रचना हुई.

जानकी नवमी विशेष रुप से सुहागन औरत व्रत रखती है, और उनकी पूजा करती हैं, और कुंवारी लड़कियां मां गौरी की सच्चे मन से पूजा करती है तो, उन्हें मनवांछित वर प्राप्त होता है. माता सीता मां गौरी की भक्त थी, वह हमेशा मां गौरी की पूजा करती थी, माता गौरी उनकी इस पूजा से खुश हुई और उन्हें अखंड सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद दीया. मां गौरी को भी माता सीता बहुत प्रिया थी, क्योंकि वह लक्ष्मी मां का अवतार थी, इसलिए जानकी नवमी में  माता सीता की पूजा करने से मां गौरी भी प्रसन्न हो जाती है, और उस सुहागन भक्तों को अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद देती है.


पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता सीता और भगवान राम एक साधारण मानव के रूप में धरती पर जन्म लिए थे, माता सीता पर मां गौरी की विशेष कृपा थी, इसलिए उनकी शक्ति से ही वह शिव धनुष एक हाथों से उठा लेती थी, माता सीता कौशल व कुंवारी अवस्था में मां गौरी की पूजा किया करती करती थी, इसी वजह से माता सीता ने भगवान राम को स्वयंबर से पहले ही देख लिया, और उन्हें पहचान गई. और मन ही मन मां गौरी को उन्हें अपना वर के रूप में मांग लिया, भगवान राम जो विष्णु के अवतार थे वह मां गौरी की कृपा से शिव धनुष को एक हाथ से ही उठा लिए, और सीता जी से विवाह किया, विवाह के बाद भी माता सीता मां गौरी की पूजा करती रही, और हर परिस्थिति में उनके साथ रही, माता केकई द्वारा भगवान राम को 14 वर्ष वनवास दे जाने पर भी, माता सीता ने भगवान राम के साथ वनवास गई, वनवास के उपरांत जब माता सीता का हरण रावण ने किया और उन्हें अशोक वाटिका के  वन में रखा और अपनी शक्ति का बल दिखाकर उन्हें अपनी पत्नी बनाना चाहा, लेकिन माता सीता सिर्फ भगवान राम के लिए ही बनी थी, और उन्होंने रावण से विवाह करने से इनकार कर दिया. रावण श्राप के कारण माता सीता से जबरदस्ती नहीं कर सकता था, इसलिए उसने राक्षसनीयो द्वारा माता सीता को बहुत पीड़ा दी, लेकिन माता सीता ने तब भी मां गौरी की उपासना और पूजा करना नहीं छोड़ा और उनकी पूजा हमेशा किया करती थी, मां गौरी की कृपा के कारण ही, रावण महा बलशाली होने के बाद भी भगवान राम के हाथों मारा गया. उसके बाद जब भगवान राम ने माता सीता को अग्नि परीक्षा के लिए कहां और अपनी पवित्रता पर प्रमाण मांगा, तब माता सीता मां गौरी की कृपा से ने अग्नि परीक्षा देकर यह साबित किया कि वह पवित्र है. 

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, जब माता सीता अयोध्या के कुछ लोगों द्वारा उन पर लांछन देने के कारण, वह भगवान राम  से अलग हो गई, और वन में अपना जीवन व्यतीत करने लगी. उस समय माता सीता गर्भवती थी, और वह मां शक्ति की कृपा से ही अकेले ही लव कुश का पालन पोषण किए. लेकिन जब लव कुश अपने पिता भगवान राम के समक्ष आए तो भी अयोध्या के कुछ लोग ने लव कुश पर भगवान राम के पिता होने पर सवाल उठाया, और इसका प्रमाण मांगा मां सीता यह अपमान सह ना पाई, और धरती मां जिनकी गोद में जन्म ली  थी उनकी गोद में वह वापस चली गई सुहागन के रूप में विदा ले गई.


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