मिथिलांचल का लोक पर्व कोजागरा

                              मिथिला कोजागरा 


मिथिलांचल का लोक प पर्व कोजागरा रविवार 9 अक्टूबर 2022 को मनाया जाएगा हमारी कोशिश रहेगी कि हम आपको कोजागरा पर्व के बारे में बड़े अच्छे से बता सके, कोजागरा मिथिलांचल का लोक पर्व है जिसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है| कोजगरा पर्व आश्विन मास की पूर्णिमा यानी कि शरद पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन नवविवाहित वर के यहां कन्या के घर से आए मखाना व पान को बांटने की परंपरा है। रिश्तेदारों और मेहमानों के आने का सिलसिला भी शुरू हो जाता है कन्या के घर से आए भाड़ में लगभग पांच से छह फुट व्यास वाले बांस से बने डाला पर धान, दही चुरा ,मखाना, पांच नारियल, पांच हत्था केला, छाछ, पान की ढोली, मखाना की माला, जनेऊ, सुपारी, इलायची और अड़ांची से सजा कलात्मक वृक्ष, पांच प्रकार की मिठाई की थाली, छाता, छड़ी व वस्त्र सहित अन्य सामग्रियों की सजावट देखते ही बनती है।इसी डाला से वर का चुमाओन करने की परंपरा है। कोजागरा का डाला बहुत प्रसिद्ध है इस रात जागने के लिए पचीसी का खेल खेला जाता है। साथ ही साथ भजन संगीत का भी आयोजन किया जाता है। 

चुमाओन

पचीसी का खेल

इसके अलावा मिथिला में कोजागरा पर्व पर नवविवाहित दूल्हे के आंगन में अरिपन बनाया जाता है। मान्यता है कि अरिपन बनाकर घर में लक्ष्मी के आगमन का इंतजार किया जाता है। शाम के समय लोगगीत के द्वारा धन की देवी लक्ष्मी का स्वागत किया जाता है। 
कोजगरा की रात जागरण का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि कोजगरा की रात लक्ष्मी के साथ ही आसमान से अमृत वर्षा होती है। पूरे वर्ष में शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा सबसे अधिक शीतल और प्रकाशमान प्रतीत होते हैं दूसरी ओर, कोजगरा को लेकर बाजार में भी चहल-पहल बढ़ गई है। कोजगरा के अवसर पर समाज के लोगों में मखाना-बताशा और पान बांटने की परंपरा है।

 दही, धान, पान, सुपारी, मखाना, चांदी से बने कछुआ, मछली, कौड़ी के साथ वर का पूजन किया जाता है। इसके बाद चांदी की कौड़ी से वर और कन्या पक्ष के बीच एक खेल होता है। इस खेल में जीतने वाले के लिए वर्ष शुभ माना जाता है। पूजा के बाद सगे-संबंधियों और परिचितों के बीच मखाना, पान, बताशे, लड्डू का वितरण किया जाता है। इस अवसर पर वर एक खास तरह की टोपी पहनते हैं जिसे पाग कहते हैं। मिथिला में पाग सम्मान का प्रतीक माना जाता है। घर के बड़े बुजुर्ग इस दिन वर को दही लगाकर दुर्घायु और सुखद वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद देते हैं। लोग मखाना, पैसे और बताशे लुटाकर उत्सव का आनंद मनाते हैं। इसे विवाह के बाद दूसरा सबसे बड़ा उत्सव माना गया है।

शरद पूर्णिमा की रात 

 मिथिला में कोजागरा पर्व के बारे में किंवदंती है कि पूर्णिमा की रात चंद्रमा से जो अमृत की बूंदें टपकी वही मखाना का रूप ले लिया। मिथिला में ऐसी मान्यता है कि पान और मखान (मखाना) स्वर्ग में भी नहीं मिलता है। इसलिए कोजागरा पर कम से कम एक मखाना और एक खिल्ली पान आवश्य खाना चाहिए। मिथिला में कोजागरा पर्व पर प्रायः सभी घरों में लक्ष्मी पूजा की भी परंपरा है। इस दिन घर में राखी तिजोरी की पूजा की जाती है। लोग चाँदी और सोने के सिक्कों को लक्ष्मी मानकर पूजा करते हैं। पूजन के बाद प्रसाद के तौर पर पान, मखान (मखाना) और मिठाई का वितरण किया जाता है।

शरद पूर्णिमा कोजागरा कथाएं

विजयादशमी की बाद पांचवें दिन बिहार में कोजारी शरद पूर्णिमा   का पर्व मनाया जाता है. आश्विन महीने की पूर्णिमा तिथि को जब चंद्रमा अपनी संपूर्ण सोलह कलाओं के साथ खिल कर आसमान पर आते हैं, तो इस रात को कोजागरी की रात कहते हैं. माना जाता है कि देवी लक्ष्मी इस रात को धरती पर भ्रमण के लिए निकलती हैं. उनके आने से पृथ्वी पर सब शुभ हो जाता.श्रीमद्भगवद्गीता के मुताबिक शरद पूर्णिमा के दिन भगवान कृष्‍ण ने ऐसी बांसुरी बजाई कि उसकी जादुई ध्‍वनि से सम्‍मोहित होकर वृंदावन की गोपियां उनकी ओर खिंची चली आईं. ऐसा माना जाता है कि कृष्‍ण ने उस रात हर गोपी के लिए एक कृष्‍ण बनाया. पूरी रात कृष्‍ण गोपियों के साथ नाचते रहे, जिसे 'महारास' कहा जाता है. मान्‍यता है कि कृष्‍ण ने अपनी शक्ति के बल पर उस रात को भगवान ब्रह्म की एक रात जितना लंबा कर दिया. ब्रह्मा की एक रात का मतलब मनुष्‍य की करोड़ों रातों के बराबर होता है. 


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