जनकपुर धाम

 


जगत जननी माता सीता का धाम जनकपुर, जो नेपाल में स्थित है, जनकपुर धाम को जानकी मंदिर भी कहा जाता, जानकी मंदिर को नौलक्खा मंदिर भी कहते हैं. धार्मिक मानताओ के अनुसार जनकपुर पूरे मिथिला का सुख समृद्धि वैभव का प्रतीक हुआ करता था, आज जहां हिंदू वास्तुकला का जनकपुर मंदिर बना हुआ है, वहां कभी राजा जनक जी का महल हुआ करता था. जानकी मंदिर जहां राम सीता की उपासना की जाती है, माना जाता है की उसी जगह पर माता सीता का बचपन बीता था माता सीता की परवरिश यहीं पर हुई थी. आज के जमाने में जहां महिलाओं की स्वतंत्रता पर आवाज उठाई जाती है, वही युगो-यूगो पहले माता सीता को बेटे की तरह पाला गया था, उन्हें युद्ध कला सिखाई गई और उन्हें अपना वर चुनने की स्वतंत्रता भी दी गई थी. मिथिला की भूमि पर आज भी भगवान राम को दामाद के रूप में पूजा जाता है और माता सीता को मिथिला की बेटी कहा जाता है, सीता जी के बारे में वर्णन मिलता है कि जब वह छोटी थी तब से उनमें अध्यात्मिक शक्ति बहुत थी, उनके पिता राजा जनक जी के पास शिव जी का एक धनुष था, जिसे हिला पाना किसी के बस में नहीं था, शिव जी का धनुष उठाने में बड़े-बड़े सुरमा के पसीने छूट जाते थे, जिसे माता सीता बचपन से ही बाएं हाथ से उठा लेती थी, राजा जनक को तभी से माता सीता की शक्ति और दिव्यता पर विश्वास हो गया, मिथिला के हर नर नारी के लिए माता सीता किशोरी के रूप में, एक बहन के रूप में और एक बेटी के रूप में माने जाते हैं. जनकपुर में माता सीता को किशोरी नाम से संबोधित किया जाता है, माता सीता को सिया धिया नाम से भी पुकारा जाता है, स्थानीय मान्यताएं के अनुसार सीता जी को मिथिला में एक योद्धा के रूप में देखा जाता है, जो बिल्कुल दुर्बल नहीं थी, और ना ही कमजोर थी, और उनकी इस छवि की आराधना हमेशा होती है. सीता जी का बचपन जनक महल में ही बीता है, आचरण में, आस्थाओं में, यहां तक कि जनकपुर के मन मंदिर में, सीता जी का जीवन चरित्र, त्याग  तपस्या और बलिदान का सर्वोच्च स्वरूप है और हर मिथिला वासी उसे धर्म की तरह धारण करना अपना कर्तव्य समझता है.


जनकपुर से करीब 60 किलोमीटर दूर सीतामढ़ी का गांव है, जहां राजा जनक जी को माता सीता मिली थी, सीतामढ़ी भारत गणराज्य के बिहार प्रान्त के तिरहुत प्रमंडल मे, स्थित एक शहर एवं जिला है, यह सांस्कृतिक मिथिला क्षेत्र का प्रमुख शहर है, जो पौराणिक के अनुसार  सीता की जन्मस्थली के रूप में उल्लिखित है, प्रचलित मानता  के अनुसार मिथिला राज्य में एक बार भयंकर अकाल पढ़ने पर राजा जनक जी को एक ऋषि ने अपने राज्य क्षेत्र की धरती पर हल चलाने का सुझाव दिया, सीता का अर्थ होता है हल का वह हिस्सा जो धरती को चीरता हुआ चलता है, विष्णु पुराण के अनुसार जब सीता जी का जन्म हुआ तब वहां तेज बरसात होने लगी, शिशु सीता जी की रक्षा के लिए तुरंत एक मढ़ी यानी कुटी का निर्माण किया गया और उसमें उन्हें रखा गया, यही  वजह है उस स्थान को आज भी सीतामढ़ी के नाम से जाना जाता है, बिहार के सीतामढ़ी में पुनौरा नाम कि जगह पर माता सीता के मंदिर को इनकी जन्म स्थली के तौर पर पावन माना जाता है ऐसी मानते हैं कि यह वही स्थान है, जहां राजा जनक जी ने हल चलाया था, मान्यता यह भी  है की राम और सीता विवाह के पश्चात राजा जनक जी ने राम सीता जी की प्रतिमा स्थापित की थी, जो समय के साथ विलुप्त हो गया और जो अयोध्या के संत बीरबल दास ने उन प्रतिमाओं की खोज की और पूजा अर्चना शुरू की तब से पुनौरा में स्थित यह मंदिर आस्था का अद्भुत केंद्र बन गया है.


सीतामढ़ी के आसपास का क्षेत्र सीता जी से जुड़ी अन्य कई मानताओ से कथा पुराणों को लेकर स्थानीय जीवन का हिस्सा है. वहीं पास में एक जगह पर पाकड़ का एक विशाल वृक्ष है, जो कई बीघा क्षेत्र में फैला हुआ है, मान्यता यह है कि विवाह के पश्चात जब श्री राम और सीता जी को वापस अयोध्या ले जा रहे थे तब इसी जगह पर सीता जी की डोली रखी थी यहां की लोककथाओं के अनुसार, सीता जी ने रात्रि विश्राम के बाद पाकड़ के दातून से अपने दांत साफ किए थे और उस दातून को फेंक दिया था, जिससे एक विशाल पाकड़ वृक्ष का जन्म हुआ. आज यहां पर उस पाकड़ वृक्ष के साथ पाकड़ के सैकड़ों अन्य वृक्ष भी हैं चूंकि यह पाकड़ का पेड़ अयोध्या-जनकपुर के मार्ग में है, इसलिए कालांतर में इस स्थान को पंथपाकड़ कहा जाने लगा. त्रेता युग से पाकड़ का पेड़ माता सीता का साक्षी है स्थानीय लोगों की श्रद्धा इतनी है कि जिस किसी के खेत मे पाकड़ की जड़े पहुंच जाती है वह श्रद्धा के कारण, उस खेत को हमेशा के लिए छोड़ देता है. वहीं निकट में एक जानकीकुंड भी है, स्थानीय लोगों का कहना है, कि यह कुंड गहरा नहीं है मगर इसका पानी कभी सूखा नहीं. सीतामढ़ी में स्थित माता सीता जी का सीता समाहित स्थल है सीता समाहित स्थल (सीतामढ़ी) मंदिर भदोही जिले में स्थित है. यह मंदिर इलाहबाद और वाराणसी के मध्य स्थित जंगीगंज बाज़ार से 11 किलोमीटर गंगा के किनारे स्थित है, मान्यता है कि इस स्थान पर माँ सीता ने अपने आप को धरती में समाहित कर लिया था. यहाँ पर हनुमानजी की 110 फीट ऊँची मूर्ति है, जिसे विश्व की सबसे बड़ी हनुमान जी की मूर्ति होने का गौरव प्राप्त है.

नेपाल में स्थित जनकपुर महल के सामने विवाह मंडप बनाया हुआ है, यह वह जगह है जहां श्री राम और सीता जी का विवाह हुआ था, माना जाता है यहां दिन और तिथि से कोई मतलब नहीं होता, यहां विवाह के लिए सभी दिन उत्तम होते हैं, जहां श्री राम जी को आज भी दामाद के रूप में पूजा करते हैं. अयोध्या जनकपुर का रिश्ता आज भी कायम है हर बरस यहां विवाह की वह सारी रस्में निभाई जाती है, जो कभी त्रेता युग में निभाई गई थी, आज भी अयोध्या से जनकपुर बारात आती है. विवाह का आयोजन धूमधाम से किया जाता ह, तिलक समारोह होता है, समधी मिलन किया जाता है, मंगल गान होता है, मिथिला के क्षेत्र की शादी में एक अकल्पनीय परंपरा समारोह के दौरान गाली देने की अकल्पनीय परंपरा है, इसे भगवान प्रसन्न हो जाते हैं.

जनकपुर महल से 30 किलोमीटर दूर धनुषा मंदिर है, धनुषा धाम की मान्यता के अनुसार खंडित हुए धनुष का एक हिस्सा यही रह गया जिसकी पूजा आज भी श्रद्धा के साथ की जाती है, धनुष का वह हिस्सा पत्थर जैसा दिखता है.

राजा जनक जी की दो पुत्री थी, सीता और उर्मिला और राजा जनक जी की छोटे भाई कुशध्वज की दो पुत्री मांडवी और श्रुतकीर्ति थी, उन सब का विवाह राम-सीता, लक्ष्मण-उर्मिला, भरत-मांडवी और शत्रुघ्न-श्रुतकीर्ति से हुआ. जनक महल और विवाह स्थल का पुनः निर्माण कुछ 100 वर्ष पहले हुआ था एक अदभुत बात यह है कि बाल्मीकि रामायण में जो प्राकृतिक चीजें वर्णित है वह भी हुबहू  आज भी वहां मौजूद है.


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