तुलसी के महत्व और पवित्रता के विषय में हम सब जानते हैं, तुलसी भगवान विष्णु व कृष्ण को अधिक प्रिय है, भगवान कृष्ण को प्रिय होने के कारण उन्हें अर्पित किए जाने वाले भोग में तुलसी का पत्ता रखा जाता है. तुलसी देवी का विवाह शालिग्राम से हुआ ,जो भगवान विष्णु का ही एक रूप है, तुलसी में अनेकों औषधि गुण होते हैं, माना जाता है कि एक तुलसी का पत्ता प्रतिदिन खाने से सारे रोग नष्ट हो जाते लेकिन एक देव ऐसे हैं, जिन्हें तुलसी का पत्ता चढ़ाना वर्जित है हम भगवान गणेश जी की बात कर रहे हैं, भगवान गणेश जी की पूजन में तुलसी का पता नहीं चढ़ाया जाता है. तुलसी का पत्ता गणेश जी को अप्रिय है, गणेश जी की पूजन में दूर्वा-घास चढ़ाए जाते है, आखिर क्यों ऐसा है कि तुलसी इतनी लाभकारी है फिर भी गणेश जी को क्यों नहीं चढ़ाई जाती, इसके पीछे कुछ पौराणिक कथाएं हैं.
पौराणिक कथा है कि, एक दिन तुलसी देवी गंगा घाट के किनारे से गुजर रही थीं. उस समय गणेश जी वहां पर ध्यान कर रहे थे. गणेश जी को देखते ही तुलसी देवी उनकी ओर आकर्षित हो गईं और गणेश जी को विवाह का प्रस्ताव दे दिया. लेकिन गणेश जी ने इस प्रस्ताव से मना कर दिया था. गणेश जी से न सुनने पर तुलसी देवी बेहद क्रोधित हो गईं, जिसके बाद तुलसीदेवी ने गणेश जी को श्राप दिया कि उनके दो विवाह होंगे इस पर गणेश जी ने भी तुलसी को शाप दे दिया कि उनका विवाह एक असुर से होगा. ये शाप सुनते ही तुलसी गणेश भगवान से माफी मांगने लगीं. तब गणपति ने कहा कि तुम्हारा विवाह जालंधर राक्षस से होगा लेकिन इसके बाद तुम पौधे का रूप धारण कर तुलसी का रूप लोगी. गणेश भगवान ने कहा कि तुलसी कलयुग में जीवन और मोक्ष देने वाली होगी लेकिन मेरी पूजा में तुम्हारा प्रयोग नहीं होगा. इसलिए गणेश भगवान को तुलसी चढ़ाना शुभ नहीं माना जाता है.
तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है इसके पीछे भी पौराणिक कथाएं हैं. गणेश जी के श्राप के कारण देवी तुलसी का जन्म वृंदा के रूप में हुआ, वृंदा की शादी जालंधर नामक राक्षस से हुआ, वृंदा भगवान विष्णु की भक्त थी और पतिव्रता भी थी, वृंदा को यह वरदान मिला था कि जब तक वह पतिव्रता रहेगी उसके राक्षस पति को कोई भी हानि नहीं पहुंचा पाएगा, इस बात का फायदा उठा कर जालंधर तीनों लोक में त्राहि-त्राहि मचा रहा था, कोई भी देवी या देवता उसका वध नहीं कर पा रहा था, क्योंकि वृंदा अपने पति से बहुत अधिक प्रेम करती थी, और पति के अलावा किसी और के बारे में नहीं सोचती थी जब जालंधर के पाप और शक्तियां इतनी बढ़ गई कि उसके जीवित रहने पर देवी-देवताओं को खतरा महसूस होने लगा, सभी देवता की योजना के अनुसार भगवान विष्णु जालंधर का रूप धारण कर वृंदा के पास पहुंच गए वृंदा भगवान विष्णु को ही अपना पति समझ बैठी, जिससे उसका पतिव्रता धर्म भंग हो गया ऐसा होते ही भगवान शिव ने जालंधर का वध कर दिया. जब यह बात वृंदा को पता चली तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दे दिया, मगर सभी देवता के आग्रह पर उन्होंने अपना श्राप वापस ले लिया और पति के साथ सती हो गई, वृंदा की राख से पौधे का जन्म हुआ जिसे तुलसी कहां गया. इस पर भगवान विष्णु ने शालिग्राम पत्थर के रूप में तुलसी से विवाह किया, और यह प्रण लिया कि तुलसी के बिना वह अन्न-जल नहीं ग्रहण करेंगे, तब से तुलसी सभी देवी-देवताओं की प्रिय हो गई और इसे शुभ माना जाने लगा लेकिन तुलसी गणेश जी और शिव जी को चढ़ाना वर्जित है.
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