सामा चकेवा मिथिला का सबसे प्रसिद्ध त्यौहार


सामा चकेवा मिथिला का सबसे प्रसिद्ध त्योहार है, यह त्यौहार बहन और भाई के अटूट प्रेम प्रतीक माना गया है। सामा चकेवा छठ पूजा के दूसरे अर्घ्य के बाद से शुरू हो जाता है इसमें बहने 9 दिनों तक रोज सामा-चकेवा, चुगला आदि की मूर्ति बनाकर उन्हें पूजती हैं।  गीत गाती है यह त्यौहार मिथिलांचल में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है


मिथिला का सबसे प्रसिद्ध सामा चकेवा त्योहार बहन भाई के प्रेम का प्रतीक है। इसमें बहने अपने भाई के दीर्घायु व लंबी उमर के लिए 7 दिनों तक रोज सामा चकेवा चुगला आदि की मूर्ति बनाकर उसे पूछती है, शाम को गीत गाती है. 19 नवंबर की पूर्णिमा को सामा चकेवा मनाया जाएगा सामा चकेवा पूजा की शुरुआत छठ पूजा की तैयारी के दूसरे अर्घ्य के बाद से शुरू हो जाती है। सामा चकेवा पर्व की समाप्ति कार्तिक पूर्णिमा के दिन होती है। इस पर में बहने सामा, चकेवा, चुगला, सतभैया चंगेरा में सजाकर पारंपरिक लोकगीत गाकर अपने भाइयों के लिए मंगल कामना करती है।


किस पर्व में शाम होते ही महिलाएं अपनी सहेलियों के साथ मैथिली लोक गीत गाते हुए घर से बाहर निकलती है, उनके हाथों में बांस की बनी हुई टोकरियां रहती हैं, जिसमें मिट्टी से बनी हुई सामा-चकेवा, पक्षियों एवं चुगला की मूर्तियां रखी जाती है। मैथिली भाषा में जो चुगलखोरी करता है, उसे चुगला कहा जाता है  उसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है कहां जाता है चुगला ने भगवान कृष्ण से सामा के बारे में चुगलखोरी की थी इसलिए महिलाएं लोकगीत गाकर आपस में मजाक के करती है और चुगलखोर चुगला का मुंह जलाया जाता है उस समय की स्थिति बड़े ही लोक में होती है माहौल हंसी मजाक से गूंजती है  चुगला का मुंह जलाते हुए महिलाएं लोकगीत गाती है, “ वृंदावन में आईग लग्लो कीयो नई मीझावे हे” और सभी महिलाएं पुनः लोकगीत गाती हुई अपने घर वापस आ जाती है, यह पर्व महिलाएं आठ दिन तक मनाती है, नौवें दिन बहन ने अपने भाई को चुरा दही मिठाई खिला कर सामा चकेवा की मूर्ति को भाइयों द्वारा तालाबों में विसर्जित कर देती है. इस पर्व से बहनों द्वारा भाई के लिए अटूट प्रेम दर्शाता है।



पुराण में भी है उल्लेख

लोकपर्व सामा-चकेवा का उल्लेख पद्म पुराण में भी है। भगवान श्रीकृष्ण के पुत्री सामा और पुत्र साम्ब के पवित्र प्रेम पर आधारित है। चुगला नामक एक चुगलबाज ने एक बार श्रीकृष्ण से यह चुगली कर दी कि उनकी पुत्री साम्बवती वृंदावन जाने के क्रम में एक ऋषि के संग प्रेमालाप कर रही थी। क्रोधित होकर श्रीकृष्ण ने अपनी पुत्री और उस ऋषि को शाप देकर मैना बना दिया। साम्बवती के वियोग में उसका पति चक्रवाक भी मैना बन गया। यह सब जानने के बाद साम्बवती के भाई साम्ब ने घोर तपस्या कर श्रीकृष्ण को प्रसन्न किया और अपने बहन और जीजा को श्राप से मुक्त कराया। तबसे ही मिथिला में सामा-चकेवा पर्व मनाया जाता है।



Post a Comment

Previous Post Next Post