होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत

 


होलिका दहन हिंदू का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो कि ठीक होली के एक दिन पहले संध्या को मनाया जाता है. होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है, इसलिए इस बार हिंदू पंचांग के अनुसार यह दिन 17 मार्च गुरुवार को मनाया जाएगा, और 18 मार्च को होली मनाई जाएगी.

होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए जश्न मनाई जाती है. परंपरा के अनुसार लोग लकड़ी  इकट्ठा करके आग जलाकर यह जश्न मनाते हैं. मान्यता के अनुसार लोग होलिका अलाव के लिए लकड़ी के एक या दो टुकड़े का योगदान करते हैं, और यह होलिका को उस आग से भस्म होने का प्रतिनिधित्व करता है. होली से एक रात पहले होलिका दहन का त्यौहार उत्तर भारत, नेपाल, दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में चिता जलाई जाती है.   होलिका दहन आमतौर पर सूर्यास्त या उसके बाद मनाई जाती है लोग पहले होली का पुतले में लकड़ी डालते है और अग्नि देव की पूजा करते हैं फिर लकड़ी में आग जलाई जाती है, लोग आग के चारों ओर गाते और नाचते हैं और होलिका दहन मनाते हैं, और उसके बाद होली रंगों का त्योहार प्रेम के साथ मनाया जाता है.


होलिका दहन की कथा  

होलिका दहन की कथा हमें बुराई पर अच्छाई की जीत से प्रेरित करती है. प्राचीन काल में एक राक्षस जिसका नाम हिरण्याकश्यप था, उसकी भगवान विष्णु से घनिष्ठ शत्रुता थी. हिरण्याकश्यप अपने आप को बहुत शक्तिशाली समझता था और अपनी शक्ति की घमंड में आकर वह अपने आप को भगवान समझना शुरू कर दिया. उसने अपने राज्य में यह घोषणा करवा दी की राज्य में सिर्फ उसकी पूजा की जाएगी. उसने अपने राज्य में यज्ञ और आहुति बंद करवा दी और भगवान के भक्तों को सताते थे. हिरण्याकश्यप का एक पुत्र था, जिसका नाम प्रह्लाद था. प्रह्लाद जो भगवान विष्णु का परम भक्त था. हिरण्याकश्यप ने अपने पुत्र को बहुत समझाया कि वह विष्णु की भक्ति ना करें, लेकिन प्रहलाद ने भगवान विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी, तो हिरण्याकश्प ने अपने पुत्र प्रह्लाद को मारने की कई बार कोशिश की, मगर प्रहलाद की भगवान विष्णु  की असीम भक्ति के  कारण इसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सका, स्वयं भगवान विष्णु प्रहलाद की रक्षा करते थे. एक दिन असुर राज हिरण्याकश्यप ने अपनी बहन होलीका के साथ प्रहलाद को मारने का षड्यंत्र रचाई, प्रहलाद को मारने के लिए होलीका को भगवान शंकर से ऐसी चादर मिली थी, जिससे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती, होलीका उस चादर को ओढ़कर प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर चिता पर बैठ गई. दैवयोग से वह चादर उड़कर प्रह्लाद के ऊपर आ गई, जिससे प्रह्लाद की जान बच गई और होलिका जल गई. होलिका दहन के दिन होली जलाकर होलिका नामक दुर्भावना का अंत और भगवान द्वारा भक्त की रक्षा का जश्न मनाया जाता  है.


होलिका दहन शुभ मुहूर्त

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 17 मार्च को रात 9:20 बजे से 10:31 बजे के बीच रहेगा. होलिका दहन का समय लगभग 1 घंटा 10 मिनट का होगा. इस दौरान होलिका की पूजा करना लाभकारी रहेगा.  होलिका दहन के अगले दिन यानी 18 मार्च शुक्रवार को होली खेली जाएगी.

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