Babadham- devo ka ghar devghar (Part -1)


 चलिए बात करते हैं, हम बाबा की नगरिया बाबा धाम के बारे मै, बाबा धाम देवघर बैजूधाम और  बैद्यनाथ धाम नाम से प्रसिद्ध है, देवघर जो झारखंड का एक शहर है, यह देवघर जिले का मुख्यालय तथा हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है. यहाँ भगवान शिव का एक अत्यन्त प्राचीन मन्दिर स्थित है. इस मंदिर में हमेशा भीड़ रहती है, विशेषकर श्रावण महीने मैं लाखों भक्त की भीड़ उमड़ती है. श्रावण में भक्त कांवर लेकर यहां आते हैं और ये शिवभक्त बिहार में सुल्तानगंज से गंगा नदी से गंगाजल लेकर 105 किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर देवघर में भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं. बाबा धाम का प्रसाद  पेड़ा जो अपने स्वाद के लिए बहुत प्रसिद्ध है, इसका स्वाद सभी  पेड़ा से बहुत अलग है, इस पेड़े को बनाने के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश के दुकानदारों से खोया मंगाया जाता है, इस पेड़े की बिक्री श्रावण महीने में ज्यादा होती है.


बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक पवित्र वैद्यनाथ शिवलिंग झारखंड के देवघर में स्थित है. जिस जगह महादेव साक्षात प्रकट हुए थे, उस जगह ज्योतिर्लिंग स्थापित किए गए, देवघर की ज्योतिर्लिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है. मान्यताएं हैं कि बैजनाथ ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है, यह देश का पहला ऐसा स्थान है जहां ज्योतिर्लिंग के साथ शक्ति पीठ भी है. शिव पुराणों के अनुसार बैजनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना विष्णु जी ने की प्राचीन कथाओं के अनुसार, शिवजी को प्रसन्न करने रावण हिमालय में तप करने लगा, रावण एक-एक करके अपने सर को काट कर शिवलिंग पर चढाने लगा, जब उसका आखरी सर बचा तो शिवजी प्रकट हो गए और  रावण के कठिन तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न होकर रावण को वरदान मांगने के लिए कहा तो रावण ने भगवान शिव को ही मांग लिया, रावण भगवान शिव को कैलाश छोड़कर अपने साथ लंका में ले जाना चाहता था, भगवान शिव ने रावण को यह वरदान दे दिया, मगर उन्होंने कहा कि मैं तुम्हारे साथ ज्योर्तिलिंग के रूप में जाऊंगा, लेकिन तुमने मुझे कहीं पर भी एक बार स्थापित कर दिया तो मैं हमेशा के लिए वही रह जाऊंगा, रावण ने भगवान शिव की बात मान ली, यह सुन देवता गण परेशान हो गए के अगर भगवान शिव कैलाश से लंका चले गए, तो रावण सबसे ताकतवर हो जाएगा, फिर सभी देवता गन्न भगवान विष्णु भगवान जी की सहायता मांगी, तब भगवान विष्णु ने वरुण देव को आज्ञा दी कि वह रावण के पेट में प्रवेश करें, रावण जब देवघर पहुंचा तब वरुण देव जी रावण के पेट में प्रवेश करने के कारण रावण को लघु शंका लगी. रावण ज्योतिर्लिंग को जमीन पर नहीं रख सकता था, इसलिए रावण ने बैजू नाम के एक ग्वाले को शिवलिंग देखकर यह कहा कि, जब तक मैं वापस नहीं लौटूंगा तब तक तुम इस शिवलिंग को धरती पर नहीं रखना, यह कहकर रावण वहां से चला गया. रावण कई घंटों तक लघु शंका करता रहा, लेकिन उसकी लघु शंका थमने का नाम नहीं ले रही थी, बैजू नाम का ग्वाले भगवान विष्णु ही थे उन्होंने उस शिवलिंग को धरती पर स्थापित कर दिया. जब रावण वापस लौट कर आया तो उसने देखा शिवलिंग धरती पर स्थापित हो चुका है, तो उसने शिवलिंग को उठाने की कई प्रयास किए लेकिन असफल रहा, तो  रावण को भगवान विष्णु की लीला समझ में आ गई और वह क्रोधित होकर अपना अंगूठा शिवलिंग पर गड़ाकर लंका चला गया. इसी कारण देवघर का शिवलिंग निचे दबा हुआ है. ब्रम्हा, विष्णु आदि देवताओ ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की, जिस ग्वाले ने शिवलिंग को स्थापित कर दिया था उसका नाम बैजू था, इसी कारण यह शिवलिंग बैद्यनाथ नाम से विख्यात हुआ. एक सबसे खास बात यह है की बाबा धाम के मंदिरों का निर्माण स्वयं विश्वकर्मा जी ने किया था.


बैजनाथ धाम देवघर को हार्दपीठ के नाम से भी जाना जाता है. इस तरह यह देश का पहला ऐसा स्‍थान है, जहां ज्योतिर्लिंग के साथ ही शक्तिपीठ भी है. मान्‍यता है इस स्‍थान पर देवी सती का हृदय गिरा था. पौराणिक कथा के अनुसार, जब राजा दक्ष ने अपने यग में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया लेकिन यज्ञ का पता देवी सती को चला तो वह अपने पिता के घर जाने की बात कही. लेकिन शिव जी ने बिना आमंत्रित नहीं जाने को कहा लेकिन देवी सती नहीं मानी और वह अपने पिता के घर यज्ञ में चली गई, लेकिन उस यज्ञ में अपने पिता द्वारा अपने पति भगवान शिव का अपमान सहन ना कर सकी और वह यज्ञ कुंड में प्रवेश कर गई, देवी सती की मृत्यु की खबर सुन भोलेनाथ अत्यंत क्रोधित हो गए, उन्होंने देवी सती का शव को लेकर तांडव करने लगे, तब देवताओं की प्रार्थना पर श्रीहर‍ि अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर को खंडित कर दिया और देवी सती के अंग जिस-जिस स्‍थान पर गिरे वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए.

बैजनाथ के शिव लिंग को कामना लिंग भी कहते हैं, मान्यताएं हैं कि यहां सभी तरह के मंगल कार्य संपन्न होते हैं, कहते हैं भोलेनाथ की कृपा से उनकी मनोवांछित कामनाओं की पूर्ति हो जाती है.


सभी शिव मंदिरों के शीर्ष पर त्रिशूल लगा द‍िखता है, लेक‍िन बैजनाथ धाम परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण व अन्य सभी मंदिरों के शीर्ष पर पंचशूल लगे हैं. यहां प्रत्‍येक वर्ष महाशिवरात्रि से दो दिनों पूर्व बाबा मंदिर, मां पार्वती और लक्ष्मी-नारायण के मंदिरों से पंचशूल उतारे जाते हैं. महाशिवरात्रि से एक दिन पूर्व विशेष रूप से उनकी पूजा की जाती है, और तब सभी पंचशूलों को मंदिरों पर यथास्थान स्थापित कर दिया जाता है इस दौरान भोलेनाथ व माता पार्वती मंदिरों के गठबंधन को हटा दिया जाता है, महाशिवरात्रि के दिन नया गठबंधन किया जाता है.

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