My first blog : मेरी श्रद्धा मेरे महादेव के लिए

 


दोस्तों मैं पहली बार अपना ब्लॉग लिख रही हूं मेरा यह ब्लॉग नरक निवारण चतुर्दशी व्रत से जुड़ा है. 30 जनवरी को नरक निवारण चतुर्दशी के दिन कि सुबह बहुत ठंड थी, ठंड अपना कहर अच्छे से दिखा रही थी, कोहरा भी बहुत भयंकर रूप लिए हुए था, मानो इस दिन की सुबह सूर्य भगवान की दर्शन होना असंभव हो.  इस दिन जब मैं सुबह उठी  तो बहुत ठंड पड़ रही थी, लेकिन मुझे ठंड का एहसास नहीं हुआ, मेरी चिंता यह थी कि मैं जल्दी से तैयार हो जाओ और महादेव मंदिर में पूजा करूं, क्योंकि नरक निवारण चतुर्दशी के दिन मैं व्रत रखती हूं. यह व्रत  निर्जल नहीं होती फिर भी मैं इस व्रत में जल ग्रहण नहीं करती लेकिन इस व्रत में मैं सिर्फ चाय पीती हूं, इस दिन मैं सुबह उठकर नित्य क्रिया कर मैं सिर्फ चाय पी थी. चाय पीने के बाद स्नान कर पूजा के लिए महादेव मंदिर जाने को तैयार हो गई. मंदिर जाते वक्त एक अद्भुत घटना घटी कोहरे भरी मौसम महादेव की भक्ति में खो गए थे और सूर्य भगवान अपनी तेज से श्रद्धालुओं को गर्मी प्रदान कर रहे थे. मंदिर पहुंचकर मैंने पूरी लगन के साथ मन समर्पित करके पूजा की, वहां पहुंचकर ऐसा एहसास हुआ के मेरे जीवन का लक्ष्य यही पूर्ण हो गया और मेरे सामने और कोई लक्ष्य शेष नहीं रहा.  हर वर्ष में कुल 24 चतुर्दशी होते हैं, लेकिन माघ महीने की यह चतुर्दशी महादेव जी को बहुत प्रिय है, क्योंकि इस दिन माता पार्वती और शिव जी का विवाह तय हुआ था, इसलिए इस दिन को नरक निवारण चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है. हमारे मिथिलांचल में या बिहार के कुछ हिस्से में यह पर्व मनाया जाता है, पर मैं मिथिला की हूं तो मैं अपने मिथिलांचल का अनुभव आप सबसे साझा कर रही हूं.  मानताएं हैं कि इस दिन के व्रत करने से पाप कर्म और बुरे प्रभावों से मुक्ति मिलती है और स्वर्ग की प्राप्ति होती है.


मेरा मन उस मंदिर में रम गया था और मैं महादेव जी की पूजा में इतनी रंग गई कि मुझे वक्त का और व्रत का कोई भी एहसास नहीं हुआ, मन ना होते हुए भी जब मैं मंदिर से घर को निकली तो ऐसा लग रहा था कि मानो कुछ छूट रहा हो, जब मैं मंदिर से घर जा रही थी तो फिर एक और अद्भुत घटना घटी मेरे घर जाते ही सूर्य भगवान का तेज भी कम हो गया और कोहरे ने फिर से उनको अपनी चादर में लपेट लिया, यह नजारा देखकर मेरा मन बहुत ही श्रद्धापूर्वक हो गया और मैं मन ही मन महादेव जी  के गीत गुनगुनाने लगी. फिर मैं घर पहुंच कर अपने नित्य काम में लग गई. मैं शाम होने का इंतजार करने लगी क्योंकि शाम को मैं उसी मंदिर में जाने वाली थी संध्या की आरती  करने. सच में वह मंदिर मेरे लिए मोहक बन गया था, जाने क्यों  मुझे ऐसा एहसास हो रहा था जैसे मुझे महादेव जी उस मंदिर में मुझे बुला रहे हो. इसलिए मैं शाम होने के इंतजार करने लगी, शाम होने वाली थी अब सभी चिड़िया अपने घर जाने को निकल चुकी थी, तभी मैं फिर से उस मंदिर की ओर निकली  संध्या की आरती करने. मंदिर जाने की इतनी उत्सुकता थी कि मैं भूल गई कि मैं व्रत की हूं, और मैं तेज रफ्तार से चलने लगी, जब मैं मंदिर पहुंची मेरी सांसें फूलने लगी, तो थोड़ा रुक गई और फिर मंदिर के अंदर चली गई संध्या आरती करने. जब मैं मंदिर पहुंची गई तो फिर से वही की हो गई, पूजा करते समय मुझे वक्त का अंदाजा ना रहा और मुझे यह भी नहीं पता चला कि मुझे मेरा व्रत खोलना भी है. शाम की पूजा होने के बाद, रात होने वाली थी और पारण यानी व्रत खोलने का वक्त होने वाला था, फिर लोगों के कहने पर मैं  उस मंदिर से घर जाने को निकली, पर ऐसा लग रहा था, जैसे अपने को छोड़कर जा रही हूं, फिर मैं एक और मंदिर गई, जोकि राम  जानकी का मंदिर भी था. वहां से मैं चरणामृत लेकर घर को निकली तब तक अंधेरा हो गया था, घर पर मां ने कहा अब व्रत खोल लो बहुत देर हो गई है. तब मैंने चरणामृत ग्रहण किया और जो कि हमारे मिथिलांचल में रिवाज है तारे देख कर बैर खाकर व्रत खोला   और इस तरह मैंने नरक निवारण चतुर्दशी व्रत पूरा किया. कहते हैं कि सच्चे मन से की हुई पूजा भगवान के दिल तक पहुंचती है, इसलिए मैं उनके दिल तक पहुंचना चाहती हूं, उनके करोड़ों भक्त मैं एक भक्त मैं भी बनना चाहती हूं. वक्त ने बुरे दिन मुझे भी दिखाए हैं, मगर उस बुरे दिन से लड़ने की हिम्मत चाहती हूं. हमारे मिथिलांचल में व्रत खोलने के बाद पारण में  अच्छे-अच्छे पकवान बनाए जाते हैं. जैसे भात, दाल, सब्जी, पापड़, तरुवा आदि. यह भी हमारे मिथिलांचल का एक अनोखा रिवाज है. तो अब मैं अपना ब्लॉग यही समाप्त करती हूं और आशा करती हूं कि यह मेरा पहला ब्लॉग आप सब को जरूर पसंद आया होगा धन्यवाद.🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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