सतुआनी पर्व में गंगा स्नान, दान और खरमास की समाप्ति से शुरू होंगे विवाह और दान




सतुआनी पर्व के बारे में बहुत लोगों को नहीं पता होगा, लेकिन यह बिहार का मुख्य पर्व में से एक है, यह पर्व 14 अप्रैल को वैशाख मास मैं होती है, भगवान सूर्य उत्‍तरायण की आधी पर‍िक्रमा पूरा करते हैं, माना गया है कि सूर्य मीन से मेष राशि में प्रवेश करते हैं, इसके बाद से ग्रीष्म ऋतु शुरू हो जाती है, लोक कथा के अनुसार हर साल 14 अप्रैल को लोग स्नान करके नई फसल काटते हैं, और उसी खुशी में सत्तू खाते हैं, इसलिए इस दिन को सतुआनी पर्व के रूप में मनाते हैं. इस दिन छोटे कच्चे आम गुड और चीनी के साथ खाने का भी प्रथा है. इसलिए लोग सत्तू और कच्चे आम और अपनी पसंद के व्यंजन के साथ इसका सेवन करते हैं.  सत्तू ही एक ऐसा खाद पदार्थ है जो गर्मी में शीतलता प्रदान करता है. 


सतुआनी पर्व के दिन दान करने का बहुत महत्व है. इस दिन गंगा स्नान के बाद पूजा अर्चना करना बहुत ही शुभ माना जाता है.  सतुआनी पर्व के दिन गंगा घाटों को सजाया जाता है, और वहां छोटे-छोटे मेले लगते हैं, इस दिन गंगा घाटों का नजारा बहुत ही अद्भुत रहता है, पूजा-अर्चना के बाद लोग सत्तू, गुड़ और कच्चे आम को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं, इस दिन सत्तू का सेवन करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है,
सतुआनी पर्व के दिन से खरमास की समाप्ति हो जाती है, तथा शादी विवाह मुंडन का मुहूर्त शुरू हो जाता है, इस दिन 5 तरह के अनाज दान करना उत्तम माना जाता है. इस दिन गंगा स्नान करने से पशु योनि के जन्म से मुक्ति मिलती है. सतुआनी पर्व  के दिन ब्राह्मणों को सत्तू दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है. कुछ जगह पर सोजन एवं ड्रमस्टिक को सेवन करना अच्छा माना जाता है. इस दिन भगवान शिव को जल चढ़ाना बहुत ही शुभ माना गया है. तथा उनके आशीर्वाद से ही आगे के कार्य किए जाते हैं.

मुझे इनकी कोई पौराणिक कथा ज्ञात नहीं. इसलिए मैं अपनी कथा आप सबसे साझा करना चाहती हूं. मुझे यह पर्व बहुत ही अच्छा लगता है, क्योंकि मुझे सत्तू बहुत ही पसंद है, सत्तू गर्मी में खाना बहुत अच्छा माना जाता है, मुझसे कई ज्यादा मेरे पापा को सत्तू पर्व बहुत पसंद था. हम सब पूरी फैमिली एक साथ बैठकर  सतुआनी पर्व  अच्छे से मनाया करते थे, तथा हम भारतीय खुशियां मनाने के लिए कोई पर्व नहीं छोड़ते. 

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